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ए॒वा नपा॑तो॒ मम॒ तस्य॑ धी॒भिर्भ॒रद्वा॑जा अ॒भ्य॑र्चन्त्य॒र्कैः। ग्ना हु॒तासो॒ वस॒वोऽधृ॑ष्टा॒ विश्वे॑ स्तु॒तासो॑ भूता यजत्राः ॥१५॥

English Transliteration

evā napāto mama tasya dhībhir bharadvājā abhy arcanty arkaiḥ | gnā hutāso vasavo dhṛṣṭā viśve stutāso bhūtā yajatrāḥ ||

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Pad Path

ए॒व। नपा॑तः। मम॑। तस्य॑। धी॒भिः। भ॒रत्ऽवा॑जाः। अ॒भि। अ॒र्च॒न्ति॒। अ॒र्कैः। ग्नाः। हु॒तासः॑। वस॑वः। अधृ॑ष्टाः। विश्वे॑। स्तु॒तासः॑। भू॒त॒। य॒ज॒त्राः॒ ॥१५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:50» Mantra:15 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:10» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:15


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर जिज्ञासु जन कैसे हों, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (यजत्राः) सङ्ग करने वालो ! जैसे (मम) मेरी और (तस्य) उसकी (धीभिः) बुद्धि वा कर्मों से (भरद्वाजाः) धारण किया है विज्ञान जिन्होंने वे सज्जन और (नपातः) पातरहित (हुतासः) सत्कार से ग्रहण किये हुए (स्तुतासः) प्रशंसा को प्राप्त (विश्वे) सब विद्वान् मेरी और उसकी बुद्धि वा कर्मों से (अर्कैः) विचारों से (ग्नाः) वाणियों को (अभि, अर्चन्ति) सब ओर से सत्कृत करते हैं, वैसे (एवा) ही (अधृष्टाः) धृष्टतारहित (वसवः) विद्यादिकों में बसनेवाले तुम (भूत) होओ ॥१५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विद्यार्थी विद्या और प्रगल्भता की इच्छा करते हैं, वे यथार्थवक्ता तथा ईश्वर के गुण कर्म और स्वभावों को धारण कर इष्ट मति और विद्या को प्राप्त होते हैं ॥१५॥ इस सूक्त में विश्वे देवों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह पचासवाँ सूक्त और पन्द्रहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्जिज्ञासवः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

Anvay:

हे यजत्रा ! यथा मम तस्य च धीभिर्भरद्वाजा नपातो हुतासः स्तुतासो विश्वे देवा मम तस्य च धीभिरर्कैश्च ग्ना अभ्यर्चन्ति तथैवाऽधृष्टा वसवो यूयं भूता ॥१५॥

Word-Meaning: - (एवा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नपातः) पातरहिताः (मम) (तस्य) (धीभिः) प्रज्ञाभिः कर्मभिर्वा (भरद्वाजाः) धृतविज्ञानाः (अभि) (अर्चन्ति) सत्कुर्वन्ति (अर्कैः) विचारैः (ग्नाः) वाचः (हुतासः) सत्कारेण हुताः (वसवः) ये विद्यादिषु वसन्ति ते (अधृष्टाः) धृष्टतारहिता अप्रगल्भाः (विश्वे) सर्वे (स्तुतासः) प्राप्तप्रशंसाः (भूता) भवत। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (यजत्राः) सङ्गन्तारः ॥१५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विद्यार्थिनो विद्यां प्रगल्भतां चेच्छन्ति त आप्तानामीश्वरस्य च गुणकर्मस्वभावान् धृत्वेष्टाम्मतिं विद्यां चाप्नुवन्तीति ॥१५॥ अत्र विश्वेदेवगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति पञ्चाशत्तमं सूक्तं पञ्चदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्यार्थी विद्या व प्रगल्भता यांची कास धरतात ते विद्वान व ईश्वर यांचे गुणकर्म स्वभाव धारण करून इष्ट बुद्धी व विद्या प्राप्त करतात. ॥ १५ ॥